जब मैं कहता हूँ की देव दीपावली Dev Deepavali तो आम तौर पर लोग यही कहेंगे कि “सीधे – सीधे दिवाली क्यों नहीं बोलते? एक ही बात तो है”, लेकिन ऐसा नहीं है। पुरे देश में मुख्य दीपावली कार्तिक मास की अमावस्या को मनायी जाती है और देव दीपावली उसके 15 दिन बाद कार्तिक पूर्णिमा को मनायी जाती है। आम तौर पर देव दीपावली मंदिरों में ही मनायी जाती है लेकिन जब बात वाराणसी की देव दीपवाली की आती है तो उसकी तो बात ही कुछ और है ।
वैसे तो वाराणसी में हर दिन ही एक उत्सव है लेकिन देव दीपावली महा उत्सव है और इसकी तैयारी दीपावली के अगले दिन से ही शुरू हो जाती है। इस साल भी वाराणसी में देव दीपावली कार्तिक पूर्णिमा अथार्त 12 नवंबर के दिन मनायी जायेगी।


वाराणसी हमेशा से यात्रियों, घुमक्कड़ों और आध्यात्मिक साधकों के लिए एक सपनो का शहर रहा है जहाँ वह अपने जीवन काल में कम से कम एक बार तो जाना ही चाहते हैं। पुरे विश्व से लोग यहाँ आते हैं फुर्सत के कुछ पल बिताने लिये। वाराणसी के लिये देव दीपावली वर्ष का वह दिन है जब यह शहर देवताओं के शहर अथार्त इंद्रलोक जैसा लगता है। पूरा नगर दीयों के प्रकाश से नहा उठता है।
बहुत से भक्त इस दिन कार्तिक स्नान होने के कारण गंगा में डुबकी लगाने आते हैं। बहुत से घरों में अखण्ड रामचरितमानस का पाठ किया जाता है और इसके बाद परिवार के लोग घाट पर लोगों को भोजन कराया जाता है ।
समारोह का आरंभ भगवान गणेश की वंदना के साथ होता है । 21 ब्राह्मणों और 41 युवतियों द्वारा वैदिक मंत्रोच्चार के साथ दीप (दिया) वंदना की जाती है । इसके बाद शहीदों को याद किया जाता है और उनके नाम से गंगा आरती करवाई जाती है । दशाश्वमेध घाट पर अमर जवान ज्योति प्रज्वलित की जाती है और राजेंद्र प्रसाद घाट पर पुलिस अधिकारियों और तीन सेनाओं – थल सेना, जल सेना और वायु सेना के शहीदों को पुष्पांजलि अर्पित जाती है।
गंगा के सभी घाटों, मंदिरों, आस – पास के महलों, सभी इमारतों, गली मोहल्लों को जगमगाते दीयों से सजा दिया जाता है जिसके कारण ऐसा लगता है की मानों सितारों ने अपना नया जहाँ बसा लिया हो। ऐसा माना जाता है कि भगवान भी इस अवसर पर वाराणसी में गंगा नदी में स्नान करने के लिये आते हैं। देव दीपावली के अवसर पर देश – विदेश से लाखों पर्यटक यहाँ आकर दीप जलाते हैं। पूरे देश और विदेशों में आकर्षण का केंद्र बन चुका देव दीपावली महोत्सव ‘देश की सांस्कृतिक राजधानी’ काशी की संस्कृति की पहचान बन चुका है। करीब 3 किलोमीटर में फैले अर्धचंद्राकार घाटों पर जगमगाते लाखों दीप, गंगा की धारा में इठलाते, बहते दीपक, एक अलौकिक दृश्य प्रदान करते हैं।
इस दिन यहाँ घाटों विभिन्न प्रकार के कार्यक्रमों जैसे की संगीत, नृत्य, नौटंकी आदि का भी आयोजन होता है। बहुत से नामी कलाकार जैसे की उस्ताद अमजद अली खान, पंडित छन्नूलाल मिश्रा, बिरजू महाराज, सोनू निगम, अनुराधा पौडवाल, हरी प्रसाद चौरसिया आदि यहाँ प्रस्तुति देते हैं। पूरा शहर सांस्कृतिक समारोहों में डूब जाता है। इसके अतिरिक्त यदि आप एक ही स्थान पर बनारस के सभी व्यंजनों के स्वाद लेना चाहते हैं यह उत्सव केवल आपके लिये है। बनारसी चाट, लिट्टी चोखा, कचौड़ी सब्जी, लौंग लता आदि देख कर आप ललचाये बिना नहीं रह सकते।
परंपरा और आधुनिकता का यह अद्भुत संगम देव दीपावली धर्मपरायण महारानी अहिल्याबाई होलकर से भी जुड़ा है। अहिल्याबाई होलकर ने प्रसिद्ध पंचगंगा घाट पर पत्थरों से बना खूबसूरत ‘हजारा दीपस्तंभ’ स्थापित किया था, जो इस परंपरा का साक्षी है। आधुनिक देव-दीपावली की शुरुआत दो दशक पूर्व यहीं से हुई थी। पंचगंगा घाट का यह ‘हजारा दीपस्तंभ’ इस दिन 1001 दीपों की लौ से जगमगा उठता है । इस उत्सव को आँखों में समा लेने के लिये लाखों लोग यहाँ उमड़ उठते हैं जिसके कारण यहाँ घाटों पर तिल रखने भर की जगह नहीं होती। अब देव दीपावली यहाँ एक इंटरनेशनल फेस्टिवल बन चुका है। इस वर्ष तो यह उत्सव और भी ख़ास होने जा रहा है क्योंकि सभी 84 घाटों पर उत्सव की रूप रेखा एक जैसी ही होगी।
इस बार भी यह उत्सव देश के सीमाओं की रक्षा में अपना जीवन कुर्बान करने वाले जवानों के नाम रहेगा। इसके लिये दशाश्वमेध घाट इंडिया गेट और अमर जवान ज्योति का प्रतिरूप बनाया गया है। देव दीपावली के दिन इस प्रतिरूप के समक्ष सेना टुकड़ी सलामी देती हुई दिखाई देगी तो अन्य घाटों पर दीपों की सजावट से एकजुटता का संदेश दिया जायेगा।
देव दीपावली उत्सव Dev Deepawali की विशेषता है कि इसका आयोजन सामाजिक संस्थाओं के सहयोग से होता है। इस बार उत्तर प्रदेश सरकार ने आर्थिक मदद की पेशकश की है, लेकिन आयोजन से जुड़ी समितियां सरकारी धन के अपेक्षा पहले की तरह कंपनियों – संस्थाओं से मिलने वाले सहयोग से ही आयोजन की तैयारी में जुटी हैं।

कैसे पहुंचे और कहाँ रुके ?
वाराणसी देश के सभी शहरों से रेल, सड़क और हवाई मार्ग से जुड़ा हुआ है। यहाँ नज़दीकी स्टेशन वाराणसी कैंट और दीन दयाल उपाध्याय जंक्शन है। वाराणसी में क्रूज़ सेवा भी आरम्भ हो चुकी है। अलकनंदा क्रूज़ कंपनी यह सेवा प्रदान करती है। आप भले इस सेवा का आनंद ले सकते हैं लेकिन लहरों पर बनारस के सफ़र का आनंद तो चप्पू वाली नावों पर ही आता है। यहाँ रुकने के ठिकानों की कमी नहीं, हर प्रकार के छोटे – बड़े होटल, गेस्ट हाउस, धर्मशालायें आदि उपलब्ध हैं यहाँ।

अधिक दिन नहीं बचे हैं अब देव दीपावली में। यदि आप परम्परा और आधुनिकता का अनूठा संगम देखना चाहते हैं, गंगा की लहरों पर एक जीवट शहर को देखना चाहते हैं और यदि एक बार फिर से दिवाली मनाना कहते हैं तो शीघ्र पहुंचे वाराणसी।
यह ग़लत बात है मैं तीन दिन पहले ही वाराणसी से आया हूँ और आपने देव दीपावली का इसना सुंदर वर्णन कर के मन फिर से ललचा दिया । बहुत ही बढ़िया वर्णन है
यह उत्सव हर वर्ष होता है, आप अगले वर्ष हिस्सा ले सकते हैं।